शिवगादी “ बाबा गाजेश्वर नाथ धाम ” महात्म्य एवं इतिहास
Shivgadi Temple History : संथाल परगना का दूसरा बाबा धाम के रूप मे प्रसिद्ध बाबा गाजेशवर नाथ ” शिवगादी ” का दर्शनीय और पोराणिक पूज्यनीय मंदिर प्रकृतिक के क्रीडा स्थली राजमहल की पहाड़ीयो मे मनोरम दृश्यो एवं झर-झर गिरते झरने की नैसर्गिक सोन्दर्य के बिच एक गृहा गुफा मंदिर है। यह मंदिर झारखण्ड प्रान्त के सहेबगंज जिला अन्तर्गत बरहेट प्रखण्ड से 6 km की दूरी पर उत्तर की ओर अवस्थित है। बाबा गाजेशवर नाथ का यह मंदिर पहड़ी के ऊँचाई मे स्थित है अतः श्रद्धलुऔ को 195 सीढ़ियों के चढ़ाई के पश्चात मंदिर का दर्शन होता है। Shivgadi Temple History
Shivgadi Images ==> Click Here
बाबा गाजेश्वर नाथ धाम मंदिर के गर्भ गृह (गुफा) प्रवेश द्वार के ऊपर बिलकुल सीधा उठा हुआ पर्वतराज एक विशाल गजरा की तरह प्रतित होता है। विशाल पर्वत निहीत इस गृहा गुफा के प्रवेश द्वार के ऊपर विद्यमान दुर्लभ अक्षय वट वृक्ष भारत भारत वर्ष में बोध गया के बाद यहाँ पाए गए है। इस वट वृक्ष की जड़े प्रवेष द्वार के बाँई ओर मंदिर सतह तक फैली हुई है। जो देखने से लगता है मानो भगवान शंकर के जटाएँ लहलहा रही है। यह वृक्ष मनोकामना कल्पतरु (वट वृक्ष) के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है की इस कल्पतरु के जड़ में पत्थर बाँधने से बाबा गाजेशवर नाथ अपनी भक्तो की सारी मनोकामनाओ को अवश्य पूर्ण करते है। इसके बगल में झर-झर गिरते हुए झरने भगवान शंकर के जटा से अविरल बहते हुए गंगा की धारा का अहसास दिलाते है। ऐसा लगता है भगवान शंकर गंगा की वेग को अपनी जटा में समेट कर मंद – मंद कर अमृत जल पृथ्वी पर प्रवाहित कर रहे है। इस जल से स्नान करने पर शरीर की सारी थकाने मिट जाती है और मन प्रफुलित हो उठाता है। गिरी गुफा मे प्रवेश करने से पहले भक्त गणो को गुफा के ठीक ऊपर से गिरते झरने के जल से पवित्र कर देता है।Shivgadi Temple History
गर्भ गृह (गुफा) मे प्रवेश करने के पश्चात बाबा गाजेशवर नाथ महादेव के पीताम्बरी शिवलिंग की दर्शन होते है। शिवलिंग के ठीक ऊपर की चट्टानों से बारहो महीने बूंद – बूंद कर जल टपकते रहता है। ऐसा प्रतीत होता है प्रकृति स्वंय ही निरंतर भगवान शंकर का जलाभिषेक करती रहती है। शिवलिंग के ठीक सामने मैया पार्वती एवं शिव के वाहन नंदी का प्रतिमा स्थापित है। गुफा के अन्दर ही गणेश एवं कार्तिकेय की मुर्ति स्थापित है। शिवलिंग के बाँई ओर गुफा के अन्दर एक और गुफा है। कहा जता है कि इस गुफा मार्ग से पुराने समय मे ऋषि गण उत्तर वाहिनी गंगा राजमहल से जल लाकर बाबा का जलाभिषेक एवं पूजा अर्चना किया करते थे। वर्तमान समय मे इस गुफा के मुख को बंद कर दिया गया है। मंदीर के बाहर दाँयी ओर एक दूसरी सिढि जो शिवगंगा तक गयी है। यहाँ एक चट्टान पर नन्दी बैल के दो पैर के निशान है। खुर रूपी गर्त मे सालो भर यहाँ तक की चिलचिलाती गर्मी में भी पानी विद्यमान रहता है जो शिवगंगा के नाम से जाने जाते है। शिवगादी मे आने वाले भक्त शिवगंगा का दर्शन करना नही भुलते। श्रावण मास मे जो काँवरिया राजमहल गंगा घाट से जल उठाते है वो दुर्गम पहाड़ी मार्ग से शिवगादी मंदिर पहुँचते है। ‘Shivgadi Temple History‘
शिवगादी की प्रचलित मान्यताएँ :-
गाजेश्वर नाथ का शिवलिंग दानवराज गजासूर के द्वारा प्रस्थापित है। शिव पुराण मे गजासूर नामक दैत्या का वर्णन अता है जो बलशाली महिषासूर का सुयोग्य पुत्र था। इसने हजारो वर्षो तक अंगुठे के बल पर खड़े होकर उग्र तपस्या कर भगवान शंकर से वर प्राप्त किया। वर प्राप्त कर वह अत्यंत बलशाली और दुराचारी हो गया इसके अत्याचार और भय से ऋषि मुनी देवता गण त्राहिमाम – त्राहिमाम करने लगे। ऋषि मुनी एवं देवताओ ने भगवान शंकर की स्तुति की। उनकी करून पुकार सुनकर भगवान शंकर ने गजासूर का संहार किया। मरते समय भी गजासूर ने भगवान शंकर की स्तुति की जिससे भगवान शंकर प्रसन्न होकर कहा तेरे द्वारा स्थापित यह शिवलिंग तेरे ही नाम से प्रसिद्धि पायेगे लोग इसे गाजेश्वर धाम के नाम से जानेंगे।
कहा जाता है कि भगवान शंकर जब नंदी पर सवार होकर गजासूर का वध कर रहे थे तब नंदी दो पैरो पर खड़ा हो गया। नंदी के उसी दो पैरौ के निशान एक चट्टानो पर पड़ गया जो आज भी मौजूद है और शिवगंगा के नाम से प्रसिद्ध है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार महाभारत काल में अर्जुन को भगवान शंकर जी का दर्शन इसी देवाना पर्वत पर हुई थी। लगभग 15 विं शताब्दी में यह मंदिर आंशिक रूप से आम लोगो के नजर में आया। 16 विं शताब्दी में राजा मानसिंह के द्वारा इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद से ही ये प्रसिद्ध होते चला गया। पूर्व में इस मंदिर तक जाने का रास्ता दुर्गम एवं कठिन था। इसी दुर्गम पहाडियों में आदिवासीयो द्वारा पूजित होते रहे और आदिवासीयो ने ही इस मंदिर का नाम शिवगादी अर्थात शिव का घर रखा। संथाल विद्रोह के नायक अमर शहिद सिद्धो – कान्हू इस मंदिर में पूजा – अर्चना करते थे। तब से यह संथालो के आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया।
बाबा गाजेश्वर नाथ धाम “शिवगादी” में सालो भर श्रद्धालू आते रहते है,पर शिवरात्रि और श्रावणी मेले में हजारो – लाखो कांवरियाँ एवं श्रद्धालु आते है और बाबा के इस दरबार में भक्तिमय माहोल में रम जाते है। लोगो में ऐसी आस्था है कि बाबा गाजेश्वर नाथ के इस दिव्य कामना लिंग का दर्शन और स्पर्श मात्र से ही समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है एवं मन को अपार शांति और आनंद की अनुभूति होती है। श्रावण मास में कांवरियाँ फरक्का (पश्चिम बंगाल), साहेबगंज एवं उत्तर वाहिनी गंगा घाट राजमहल से जल लाकर बाबा गाजेश्वर नाथ का जलाभिषेक करते है। यहाँ यात्रीयो के ठहरने के लिए अनेक निः शुल्क धर्म शालाएं ,चिकित्सा कैंप,पेयजल स्नानघर ,शौचालय,पार्किंग आदि की व्यवस्था है। शिवगादी प्रबंध समिति श्रद्धालुओं एवं यात्रियों के लिए हमेशा तत्पर रहती है। “Shivgadi Temple History”
कैसे आएँ :- शिवगादी आने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन बरहरवा जं॰ है जो हावड़ा-दिल्ली लूप लाईन में स्तिथ है। यहाँ से बरहेट से बस , टैक्सी , ओटो हर समय शिवगादी के लिए उपलब्ध है। इन स्थानों से शिवगादी की दुरी (सड़क मार्ग से) इस प्रकार है :-
निकतम रेलवे स्टेशन –बरहरवा जं॰ 26 km
साहेबगंज – 50 km
पाकुड़ -50 km
गोड्डा – 60 km
दुमका -100 km
देवघर – 160 km